Sunday, December 30, 2012

निर्भया (Nirbhaya)


सदियाँ बीत गयी,
पर हस्तिनापुर में कौरवों का अत्याचार अब भी कायम है|
आज भी हर रोज,
एक नयी पांचाली,
किसी ना किसी दुस्सासन के हवस का शिकार हो रही है|
अब कोई कृष्ण नहीं आता उसकी लाज बचाने|
धृतराष्ट्र आज भी अंधेपन का नाटक कर रहा है|
बेटियों और बहुओं की करुण पुकार मूक होकर सुनता है|
और पूछता है, कहो संजय “अब ठीक है?
गांधारी अपने युवराज के वज्रदेह की कामना में,
आज भी अपनी आँखों पर पर्दा डाले हुए है|

लेकिन, मैं पूछता हूँ !
कहाँ है आज भीम भारत ???
क्या आज फिर से हम अपने पुरुषार्थ को जुए में हार गए हैं ???
क्या कोई नहीं जो इस दुस्सासन की छाती फाड़ सके ???
क्या कोई नहीं जो इस दुर्योधन की जंघा तोड़ सके ???
क्या कोई नहीं जो निर्भया को अभय का वरदान दे सके ???
*****************************************************

Sadiyan beet gayi
Par hastinapur mein Kauravon ka shashan abhi bhi kayam hai
Aaj bhi har roj
Ek nayi Panchali
kisi na kisi Dussasan ke hawas ka shikar ho rahi hai
Ab koi krishna nai aata uski laaz bachane
Dhritrastra aaj bhi andhepan ka natak kar raha hai
Betiyon aur bahuon ki karun pukar mook hokar sunta hai
Aur poochhta hai, kaho Sanjay “Ab Thik Hai?
Gandhari  apne yuvraj ke Vajradeh ki kamna mein
aaj bhi apne aankhon par parda dale huye hai

Lekin, main poochhta hoon
Kahan hai aaj Bheem Bharat
Kya aaj phir se hum apne purushrath ko Juye mein haar gaye hain ???
Kya koi nahin jo is dussasan ki chhati phaad sake ???
Kya koi nahin jo is Duryodhan ki Jangha tod sake???
Kya koi nahin jo Nirbhaya ko abhay ka vardan de sake???


Friday, September 14, 2012

हम अपना प्यार भुला दें (Hum Apna Pyar Bhula Dein)

आज उनका ये संदेश मिला,
एक बेबस सा आदेश मिला।
मर जायें तिल-तिल कर,
आओ हम-तुम मिल कर,
एक कोना जी का जला दें।

हम अपना प्यार भुला दें।

प्यार की उन बातों को भूलें,
सपनों में कटी रातों को भूलें,
और भूलें सारी यादों को,
कर ना सके जिन वादों को,
वापस दिल में दबा दें।

हम अपना प्यार भुला दें।

था तुझे क्या यह ग्यात,
होता स्नेह से स्नेह का घात।
एक के आँसू दूजे की हंसी,
मेरे उर में जो पीड़ा बसी,
मेरा अस्तित्व मिटा दे।

हम अपना प्यार भुला दें।

दोराहा (Doraha)

चलते-चलते रुक सी गयी थी राह 
सामने देखा,
एक दोराहा खड़ा था
अपनी बाहें पसारे,
दोनों हाथों में मंजिलें लिए हुए

मंजिलें, मेरी ही मंजिलें
लेकिन कितनी जुदा-जुदा

एक के करीब आता हूँ
तो दूसरी दूर होती जाती है
सरकती जाती है

कभी कभी सोचता हूँ
गलत राह चुनी मैंने
एक बार मुड़ा भी
पर
पिछली राह मिटती जाती थी
और
ओझल होती जाती थी
दूसरी मंजिल

दोराहा बुदबुदा रहा था --
"जिंदगी के सफर में,
कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है"

~सुधांशु कुमार ~

***********************************
Chalte-chalte ruk si gayi thi raah
Saamne dekha ek doraha khada tha
Apni baahein pasare,
Dono haathon mein manzilein liye huye

Manzilein, meri hi manzilein
Lekin, kitni zuda-zuda

Ek ke kareeb aata hoon
To doosri door hoti jaati hai
Sarakti jaati hai

Kabhi-kabhi sochta hoon,
Galat raah chuni maine
Ek baar muda bh
Par
Pichhli raah mit-ti jaati thi
Aur
Ojhal hoti jaati thi
Doosri Manzil

Doraha budbuda raha tha --
"Zindagi ke safar mein,
Kuchh paane ke liye kuchh khona hi parta hai"

~Sudhanshu Kumar~

Sunday, September 02, 2012

क्या तुम्हें भी (Kya Tumhe Bhi)

क्या तुम्हें भी आती है याद मेरी?
क्या तुम भी जागा करते हो?
दबाकर आँसू पलकों में तुम भी
मेरी खुशियाँ माँगा करते हो?

भूल जाऊं, पर कैसे बोलो
प्रीत तेरी जो हिय में बसी
वो चंचल चितवन, निर्झर नयन
उन पुष्प अधरों पर भोली सी हंसी

दबाता हूँ मैं बार-बार
स्मृतियाँ आती हैं उभर-उभर
करता हूँ जो भूल आज
सालेगी मुझको उम्र भर

भूल कहूँ या परवशता
बेबस हूँ स्वाधीन नहीं
स्नेहपाश में जकड़ा हूँ
वरना मैं ऐसा हीन नहीं

~ सुधांशु कुमार

आती है तुम्हारी याद प्रिये (Aati Hai Tumhari Yaad Priye)

आती है तुम्हारी याद प्रिये


रूठ  गए  तुम  आज पी से
देते  हो  सजा  खामोशी से
मैं  एकाकी रात बिताता हूँ
मन में लिए अवशाद प्रिये
               आती है तुम्हारी याद प्रिये

देखी  खुशी  मेरे  अपनों में
सपने देखे उनके सपनो में
एक हो तुम भी उनमे से ही
नहीं कोई तुम अपवाद प्रिये
              आती है तुम्हारी याद प्रिये

सर्वोत्तम था सर्वगुण आगर था
तुम  सरिता  थी  मैं  सागर  था
क्या  थी   वो   मिथ्या  मनुहार
या  प्रथम  प्रेम का  प्रमाद प्रिये
               आती है तुम्हारी याद प्रिये

बहुत  हो  चुका अब  हठ छोड़ो
पल-पल टूट रहे तारों को जोड़ो
मानिनी  मैं कब  से मांग  रहा
तेरी  ममता  का  प्रसाद  प्रिये
              आती है तुम्हारी याद प्रिये

 ~ सुधांशु कुमार~

टूटे सपने (Toote Sapne)

सदियों से भारी बीते
वो कुछ पल जब तुम रूठ गए थे

ऐसा लगा जैसे
कुछ टूट सा गया हो
कुछ बिखर सा गया हो

और देर तक ढूँढता रहा
मैं उन सपनों को
जो मैंने तुम्हारे साथ देखे थे

~सुधांशु कुमार~

Monday, January 09, 2012

मधुर मिलन (Madhur Milan)

My composition for the dearest one :

तुम मेरी आशा अनंत बनो
मैं तेरा सकल संसार बनूँ
तुम मेरी जन्मों की प्यास बनो
और मैं अमृत की धार बनूँ

मैं कह दूँ और तुम सुन लो
अधरों में ना कोई कंपन हो
अपलक देखें एक-दूजे को
आँखों में अक्षय अपनापन हो

तुम हो सिमटी-सकुचाई सी
मेरा मन हो अधीर प्रिये
हम खो जाएँ एक-दूजे में
जैसे सरिता-सागर का नीर प्रिये

~सुधांशु कुमार~

Saturday, June 05, 2010

जब तुम नहीं होते! (Jab Tum Nahi Hote!)

कुछ भी नहीं होता, जब तुम नहीं होते!
आज, कई रोज बाद,
सोचा, एक गीत बनाऊं;
हर तरफ सन्नाटा है, बोल कहाँ से लाउं|

सुर तुम हो, और ताल तुम,
इस शायर का ताज़ा ख्याल तुम,
तभी तो ...
कुछ भी नहीं होता, जब तुम नहीं होते!

~सुधांशु कुमार~

*******************************
Kuchh bhi nahi hota, Jab tum nahi hote!
Aaj, kai roj baad,
Socha, ek geet banaun;
Har taraf sannata hai, bol kahan se laun.

Sur tum ho aur taal tum,
Is shayar ka taza khayal tum.
Tabhi to …
Kuch bhi nahi hota, jab tum nahi hote!

Tuesday, June 01, 2010

वो यादें (Vo Yadein)

याद है तुम्हे,
जब हम पहली बार मिले थे
तब झुकी-झुकी नजरों से तुमने मुझे देखा था,
चुपके-चुपके, सबसे छुपके|
वो नज़र चुभ सी गयी थी मेरे दिल पर
आज भी चुभी हुई है|
पहले गुदगुदा जाती थी,
अब सालती रहती है|

वो पहली मुलाकात,
एक सिलसिला बन गयी|
पर एक बात कहूँ ,
तुम जितनी बार मिले,
लगा की पहली बार मिले हो|
और हर बार,
मैं एक नयी ताज़ी चुभन वापस लेकर लौटा|

वो बातें,
वो मुलाकातें
और उन्ही बातों और मुलाकातों में,
पता ही ना चला की तुम कब इस दिल के मेहमान बन गए|
जनता था,
कि सब एक सपना है|
और सपने एक ना एक दिन टूटते जरूर हैं|
वो सपना भी टूट गया एक रोज़
और उसके साथ टूटा, और भी बहुत कुछ|

कहते हैं,
'वक़्त की घास' सब कुछ ढँक लेती है,
पर,
कभी देखा है, बंजर ज़मीन पर घास को उगते|
आज भी कोरी पड़ी है इस दिल की धरती,
और सूख कर मर गए हैं इसमें बसे बीज|

याद है तुम्हे!
तुम्हे देख कर
मैं सारे ज़क्म भूल जाया करता था|
आज,
उन्ही यादों कि याद ने,
पुराने ज़ख्म हरे कर दिये|
कभी-कभी सोचता हूँ
क्या तुम्हे भी आती है याद,
उन यादों की!
क्या तुम्हे भी दर्द होता है!

~सुधांशु कुमार ~

*********************************
Yaad hai tumhe,
Jab hum pahli baar mile the
Tab jhuki-jhuki najron se tumne mujhe dekha tha,
Chupke-chupke sabse chhupke.
O najar chubh si gayi thi mere dil per
Aaj bhi chubhi hui hai.
Pahle gudguda jati thi,
Ab salti rahti hai.

O pahli mulakat,
Ek silsila ban gayi.
Par ek baat kahun
Tum jitni baar mile,
Laga ki pahli baar mile ho
Aur har baar
Main ek nayi tazi chubhan lekar wapas lauta.

O batein, O mulakatein
Aur unhi baton aur mulakaton mein,
Pata hi na chala ki,
Tum kab is dil ke mehmaan ban gaye.
Janta tha,
Ki sab ek sapna hai
Aur sapne ek na ek din toot-te jaroor hain.
O sapna bhi toot gaya ek roz,
Aur uske saath toota aur bhi bahut kuchh.

Kahte hain,
Waqt ki ghas sab kuchh dhank leti hai,
Per,
Kabhi dekha hai, banjar jameen per ghas ko ugte.
Aaj bhi kori padi hai is dil ki dharti,
Aur sookh kar mar gaye hain isme base beej.

Yaad hai tumhe
Tumhe dekh kar,
Main saare jakhm bhool jaya karta tha.
Aaj,
Unhi yadon ki yaad ne,
Purane jakhm hare kar diye.
Kabhi-kabhi sochta hoon
Kya tumhe bhi aati hai yaad,
Un yadon ki?
Kya tumhe bhi dard hota hai?

Sunday, May 09, 2010

Ilzam (इलज़ाम)

कुछ रोज हो गये थे
उनसे बातें किये
वज़ह पूछी , तो बोल दिया
वक़्त नहीं मिला

कल से मालूम होता है
वक़्तकी सांस कुछ तेज़ है
बहुत देर तक नहीं झेल पायेगा
बेचारा ,
इन झूठे इल्जामों का बोझ!

~सुधांशु कुमार~


********************
Kuchh roj ho gaye the
Unse batein kiye.
Wazah poochhi, to bol diya
waqt nahi mila.

Kal se maloom hota hai
Waqt ki saans kuchh tez hai.
Bahut der tak nahi jhel payega,
Bechara,
In jhoothe ilzamon ka bojh!

Dostana (दोस्ताना)



चंद रोज़ पहले की बात है,
यार काँधे  से कांधा मिला के चलते थे|
मिलते तो सीने से लगाते|
कलेजा जुड़ जाया करता था|


आज दोस्त हाथ पकड़ने से कतराते हैं|
डरते हैं|
कहीं लोग दोस्ती को,
दोस्ताना समझ लें|
       
**********************

Chand roz pahle ki baat hai,
Yaar kandhe se kandha mila ke chalte the.
Milte to seene se lagate.
Kaleja jud jaya karta tha.

Aaj dost haath pakarne se katrate hain.
Darte hain.
Kahin log dosti ko
Dostana na samajh lein.

Pravas (प्रवास)




गाँव के सिवान पे,
वो पुराना पीपल का पेड़;
और उसकी डाल से लटकते वो भूत|
दीखते कभी नहीं|
पर, उनके होने का अहसास
सबमें दीखता था|
सबकी,
कतराती आँखों में|
सबके,
होठों की बुदबुद में|


आज बरसों बाद,
उसी पीपल की छाँव में,
कोई अहसास नहीं;
कोई डर नहीं|
शायद भूत भी,
मेरी तरह,
प्रवासी हो गए!


------------


Gaon ke sivan pe
Wo purana peepal ka ped
Aur uski daal se latakte wo bhoot.
Dikhe kabhi nahi,
Par, unke hone ka ahsas
Sabme dikhta tha.
Sabki,
Katrati aankhon mein
Sabke,
Hothon ki budbud mein.
Aaj barson baad,
Usi peepal ki chhaon mein
Koi ahsas nahi,
Koi darr nahi.
Shayad bhoot bhi,
Meri tarah,
Pravasi ho gaye.