गाँव के सिवान पे,
वो पुराना पीपल का पेड़;
और उसकी डाल से लटकते वो भूत|
दीखते कभी नहीं|
पर, उनके होने का अहसास
सबमें दीखता था|
सबकी,
कतराती आँखों में|
सबके,
होठों की बुदबुद में|
आज बरसों बाद,
उसी पीपल की छाँव में,
कोई अहसास नहीं;
कोई डर नहीं|
शायद भूत भी,
मेरी तरह,
प्रवासी हो गए!
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Gaon ke sivan pe
वो पुराना पीपल का पेड़;
और उसकी डाल से लटकते वो भूत|
दीखते कभी नहीं|
पर, उनके होने का अहसास
सबमें दीखता था|
सबकी,
कतराती आँखों में|
सबके,
होठों की बुदबुद में|
आज बरसों बाद,
उसी पीपल की छाँव में,
कोई अहसास नहीं;
कोई डर नहीं|
शायद भूत भी,
मेरी तरह,
प्रवासी हो गए!
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Gaon ke sivan pe
Wo purana peepal ka ped
Aur uski daal se latakte wo bhoot.
Dikhe kabhi nahi,
Par, unke hone ka ahsas
Sabme dikhta tha.
Sabki,
Katrati aankhon mein
Sabke,
Hothon ki budbud mein.
Aaj barson baad,
Usi peepal ki chhaon mein
Koi ahsas nahi,
Koi darr nahi.
Shayad bhoot bhi,
Meri tarah,
Pravasi ho gaye.
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