Friday, September 14, 2012

हम अपना प्यार भुला दें (Hum Apna Pyar Bhula Dein)

आज उनका ये संदेश मिला,
एक बेबस सा आदेश मिला।
मर जायें तिल-तिल कर,
आओ हम-तुम मिल कर,
एक कोना जी का जला दें।

हम अपना प्यार भुला दें।

प्यार की उन बातों को भूलें,
सपनों में कटी रातों को भूलें,
और भूलें सारी यादों को,
कर ना सके जिन वादों को,
वापस दिल में दबा दें।

हम अपना प्यार भुला दें।

था तुझे क्या यह ग्यात,
होता स्नेह से स्नेह का घात।
एक के आँसू दूजे की हंसी,
मेरे उर में जो पीड़ा बसी,
मेरा अस्तित्व मिटा दे।

हम अपना प्यार भुला दें।

दोराहा (Doraha)

चलते-चलते रुक सी गयी थी राह 
सामने देखा,
एक दोराहा खड़ा था
अपनी बाहें पसारे,
दोनों हाथों में मंजिलें लिए हुए

मंजिलें, मेरी ही मंजिलें
लेकिन कितनी जुदा-जुदा

एक के करीब आता हूँ
तो दूसरी दूर होती जाती है
सरकती जाती है

कभी कभी सोचता हूँ
गलत राह चुनी मैंने
एक बार मुड़ा भी
पर
पिछली राह मिटती जाती थी
और
ओझल होती जाती थी
दूसरी मंजिल

दोराहा बुदबुदा रहा था --
"जिंदगी के सफर में,
कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है"

~सुधांशु कुमार ~

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Chalte-chalte ruk si gayi thi raah
Saamne dekha ek doraha khada tha
Apni baahein pasare,
Dono haathon mein manzilein liye huye

Manzilein, meri hi manzilein
Lekin, kitni zuda-zuda

Ek ke kareeb aata hoon
To doosri door hoti jaati hai
Sarakti jaati hai

Kabhi-kabhi sochta hoon,
Galat raah chuni maine
Ek baar muda bh
Par
Pichhli raah mit-ti jaati thi
Aur
Ojhal hoti jaati thi
Doosri Manzil

Doraha budbuda raha tha --
"Zindagi ke safar mein,
Kuchh paane ke liye kuchh khona hi parta hai"

~Sudhanshu Kumar~

Sunday, September 02, 2012

क्या तुम्हें भी (Kya Tumhe Bhi)

क्या तुम्हें भी आती है याद मेरी?
क्या तुम भी जागा करते हो?
दबाकर आँसू पलकों में तुम भी
मेरी खुशियाँ माँगा करते हो?

भूल जाऊं, पर कैसे बोलो
प्रीत तेरी जो हिय में बसी
वो चंचल चितवन, निर्झर नयन
उन पुष्प अधरों पर भोली सी हंसी

दबाता हूँ मैं बार-बार
स्मृतियाँ आती हैं उभर-उभर
करता हूँ जो भूल आज
सालेगी मुझको उम्र भर

भूल कहूँ या परवशता
बेबस हूँ स्वाधीन नहीं
स्नेहपाश में जकड़ा हूँ
वरना मैं ऐसा हीन नहीं

~ सुधांशु कुमार

आती है तुम्हारी याद प्रिये (Aati Hai Tumhari Yaad Priye)

आती है तुम्हारी याद प्रिये


रूठ  गए  तुम  आज पी से
देते  हो  सजा  खामोशी से
मैं  एकाकी रात बिताता हूँ
मन में लिए अवशाद प्रिये
               आती है तुम्हारी याद प्रिये

देखी  खुशी  मेरे  अपनों में
सपने देखे उनके सपनो में
एक हो तुम भी उनमे से ही
नहीं कोई तुम अपवाद प्रिये
              आती है तुम्हारी याद प्रिये

सर्वोत्तम था सर्वगुण आगर था
तुम  सरिता  थी  मैं  सागर  था
क्या  थी   वो   मिथ्या  मनुहार
या  प्रथम  प्रेम का  प्रमाद प्रिये
               आती है तुम्हारी याद प्रिये

बहुत  हो  चुका अब  हठ छोड़ो
पल-पल टूट रहे तारों को जोड़ो
मानिनी  मैं कब  से मांग  रहा
तेरी  ममता  का  प्रसाद  प्रिये
              आती है तुम्हारी याद प्रिये

 ~ सुधांशु कुमार~

टूटे सपने (Toote Sapne)

सदियों से भारी बीते
वो कुछ पल जब तुम रूठ गए थे

ऐसा लगा जैसे
कुछ टूट सा गया हो
कुछ बिखर सा गया हो

और देर तक ढूँढता रहा
मैं उन सपनों को
जो मैंने तुम्हारे साथ देखे थे

~सुधांशु कुमार~