तुम कौन हो?
जाने कब बैठ गयी तुम,
इस दिल में मेहमान बन।
कभी-कभी खिल आती हो,
मेरे होठों पर मुस्कान बन।
बसी मेरे हर सांस में,
प्रिये, बोलो तो,
तुम कौन हो?
करता हूँ महसूस तुम्हें,
गैरों में, मेरे अपनों में।
बस तुमको हीं पाता हूँ,
बंद या खुली आँखों के सपनों में।
बसी मेरे द्रिश्य पटल पर,
प्रिये, बोलो तो,
तुम कौन हो?
ये मेरे भाव नहीं,
बस तुम्हारी चाहत है।
ये मेरे शब्द नहीं,
बस तुम्हारी आहट है।
बसी मेरी लेखनी में,
प्रिये, बोलो तो,
तुम कौन हो?
जाने कब बैठ गयी तुम,
इस दिल में मेहमान बन।
कभी-कभी खिल आती हो,
मेरे होठों पर मुस्कान बन।
बसी मेरे हर सांस में,
प्रिये, बोलो तो,
तुम कौन हो?
करता हूँ महसूस तुम्हें,
गैरों में, मेरे अपनों में।
बस तुमको हीं पाता हूँ,
बंद या खुली आँखों के सपनों में।
बसी मेरे द्रिश्य पटल पर,
प्रिये, बोलो तो,
तुम कौन हो?
ये मेरे भाव नहीं,
बस तुम्हारी चाहत है।
ये मेरे शब्द नहीं,
बस तुम्हारी आहट है।
बसी मेरी लेखनी में,
प्रिये, बोलो तो,
तुम कौन हो?
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